रविवार, अप्रैल 11, 2010

माओवादियो से जुझता हिन्दुस्तान

केन्द्र सरकार के आकड़ो की माने तो देश की 40 प्रतिशत जिलो पर माओवादियो की समान्तर सरकारे चलती हैं जिसमें बिहार के 38 जिलो में से 26जिले माओवादियो के गिरफ्त में हैं।यह आकड़ा राज्य सरकार के बेवसाईट पर उपलब्ध हैं। नीतीश कुमार के कार्यकाल में सौ से अधिक नक्सली घटनाये हो चुकी हैं जिसमें दर्जनो लोगो की मौंत हुई हैं और कई पुलिस वाले मारे जा चुके हैं दर्जनो बार पुलिस थाने पर हमले हुए हैं और काफी मात्रा में आर्मस की लूट हुई हैं।लेकिन नीतीश कुमार दिल्ली में महिला पत्रकारो के बीच जिस तरीके से गृह मंत्री पी चिदंबरम पर कटांक्ष किये और पत्रकारो ने ठहाके लगाकर नीतीश कुमार के दलील का समर्थन किया।यह बेहद शर्मनाक हैं।एक व्यक्ति जो देश के काउज को लेकर गम्भीर हैं उसके प्रति इस तरह का खलाय रखना वाकई शर्मसार करने वाली बात हें।


नीतीश कुमार कहते हैं कि नक्सलवाद का हल हथियार या स्टेट पावर से नही निकल सकता हैं जब तक विकास की धारा अंतिम व्यक्ति तक नही पहुच जाता ।अच्छी बात हैं इस बयान से ऐसी मैं बैंठकर गरीबी मिटाने के नाम पर बड़ी बड़ी बात करने वाले बुद्धिजीवी को नीतीश कुमार के बयान से बल मिला होगा। पिछले आठ माह में बिहार में नक्सलियो ने दो बड़े नरसंघार को अंजाम दिया हैं जिसमें चालिस से अधिक लोगो की मौंत हुई हैं।एक घटना खगड़िया जिले के अमौसी गांव में हुआ जहां नीतीश कुमार के विरादरी के 18लोगो की हत्या महादलित मुसहर जाति के लोगो ने किया था।वाकय जिस इलाके में यह घटना घटी हैं वहां विकास नही हुआ हैं लेकिन इस घटना के पीछे का कारण यह था कि वर्षो से जमीन को लेकर इन क्षेत्रो में संघर्ष चल रहा हैं। पिछली सरकार हो या फिर नीतीश कुमार के चार वर्षो का कार्यकाल हो कभी किसी ने इस क्षेत्र मे वर्षो से जारी संघर्ष को रोकने पर पहल नही किया।लेकिन हत्या विरादरी के लोगो का हुआ तो नीतीश कुमार ने भी पुलिस बल के सहारे इन इलाको में रहने वाले मुसहर जाति के एक एक गांव को रौद दिया ।सौ से अधिक लोग गिरफ्तार हुए हैं और एक एक कर मुसहर जाति के युवको को मारा जा रहा हैं।लेकिन जिस कारण से यह नरसंघार हुआ उस कारण के समाधान के लिए सरकार ने कोई पहल नही किया।

दूसरी घटना जमुई जिले की हैं जहां के नक्सली नेता नीतीश कुमार के विरादरी के हैं या फिर पिछड़ी जाति के लोग हैं।नक्सलियो ने पहाड़ पर स्थिति आदीवासी गांव पर हमला बोलकर 15लोगो की हत्या कर दी।इन गांव वालो ने नक्सली के सामने अपने बहु बेटी को भेजने से मना कर दिया।लेकिन ये आदिवासी आज की राजनीति में वोट बैंक नही हैं इस लिए नीतीश जी इस घटना पर अफसोस भी जाहिऱ नही किये।आज भी उन इलाको में बसे आदिवासी नक्सलियो से लोहा से रहे हैं और पिछले दिनो छह नक्सलियो को तीर धनुश से घायल कर जिंदा जला दिया।

यह दो घटनाये महान विचारक मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के दोहरे चरित्र को समझने के लिए काफी हैं।और तीसरी जो सबसे बड़ी बात हैं वह हैं बिहार के अधिकांश नक्सली संगठन को कही न कही सरकार का समर्थन मिल रहा हैं मुख्यमंत्री के पार्टी के बड़े नेता और विधानसभा के अध्यक्ष पर नक्सली से सांठगांठ के कई बार आरोप भी लग चुके हैं।यही स्थिति झारखंड का हैं जहां के मुख्यमंत्री शिबु सोरेन पर नक्सलियो के मदद से चुनाव जीतने के आरोप लगते रहे हैं।यह दोनो राज्य ऐसा हैं जहां के मुख्यमंत्री अप्रेशन ग्रीन हंट का खुलकर विरोध कर रहे हैं।

यह तो वक्तिगत मामला हो गया लेकिन इस मसले पर देश के लोग क्या सोचते हैं उसपर भी बहस होनी चाहिए पत्रकारिता के दौरान मुझे कई बार नक्सली नेताओ और उसके समर्थको से मिलने का मौंका मिला हैं।मेरा मानना हैं कि नक्सली संगठन भी अपराधियो का एक संगठित गिरोह हैं जो गरीबी मिटाने और शोषण के खिलाफ आर्मस के माध्यम से क्रांति लाने की बात करते हैं।उनका चरित्र और आचरण दाउद,भिडरावाला और अलकायदा से कही भी अलग नही हैं।मुझे यह समझ में नही आता हैं कि लोग कहते हैं या यू कहे सरकार और सेना अध्यक्ष भी कहते हैं कि नक्सली भी देश का नागरिक हैं इस पर हवाई हमला कैसे किया जाये या फिर सेना का उपयोग नही होनी चाहिए।मैं पुछना चाहता हू कि खालिस्तान के समर्थन क्या विदेशी थे।काश्मीर या फिर उत्तरपूर्व में जो हिंसक आदोलन हो रहे हैं वै सभी विदेशी हैं क्या।नक्सली भी वही कर रहे हैं जो अलकायदा या आतंकवादी इस देश में करना चाहते हैं।

नक्सली क्या कर रहे हैं अपनी बात को जनता के बीच रखे या फिर मीडिया के सामने लाये और देश स्तर पर बहस हो, लेकिन ये लोग यह नही चाहते हैं अभी क्या हो रहा हैं, नक्सली इलाको में सड़क बनाने वाली कम्पनी अच्छी सड़के बनाये इसके लिए नकसली तोड़ फोड़ नही करते हैं ।तोड़ फोड़ या फिर कम्पनी के लोगो का अपहरण इसलिए करता हैं कि उन्हे लेवी में बड़ी राशी मिले। गरीबो को समय पर राशन मिले, नरेगा के तहत काम मिले गरीबी मिटाने को लेकर जो योजनाये चल रही हैं उससे गरीबो को लाभ मिले इसके लिए नक्सली नेता हिसंक घटनाओ को अंजाम नही देते हैं उन्हे तो बस लेवी चाहिए जो पदाधिकारी गरीबो का राशन बेचकर लेवी दे, जो अधिकारी फायल में ही सड़क बना दे, जो अधिकारी नरेगा का पैसा आपस में बाट ले वैसे अधिकारी नक्सली के सबसे करीबी हैं।कहने का मतलब यह हैं कि ये भी गरीबो के हकमारी करके ही अपना संगठन चला रहे हैं।इन दिनो बिहार में सौ से अधिक सरकारी स्कूलो को नक्सली संगठनो ने डाईनामाईट से उड़ा दिया हैं।इसका कोई मतलव हैं क्या।जमशेदपुर में जिस बीडीओ का अपहरण किया गया था उस बीडीओ ने नरेगा के कार्य के माध्यम से गरीब आदिवासी को रोजगार मुहैया कराने को लेकर जंगल में आदिवासीयो के साथ बैंठक कर रहा था।और उसी बीच से नक्सलीयो ने उसे उठाकर ले गये इसलिए कि बीडियो विकास की राशी को बांटने के बजाय आदिवासियो के लिए काम करना चाहता था।ऐसे एक नही हजारो उदाहरण हैं महास्वेता देवी जैसे लोगो को यही समझने की जरुरत हैं नक्सली भी वही कर रहे हैं जो पहले अंग्रेज करते थे या फिर उन इलाके के जमीनदार करते थे।

दिल्ली और बड़े शहरो में रहने वाले ऐसे लोग जो नक्सलियो को गरीबो का हिमायती मानते हुए नैतिंक समर्थन दे रहे हैं ।उनकी जानकारी के लिए बिहार और झारखंड के उन इलाको में सरकारी अधिकारी खासकर बीडियो और डीएम जो विकास कार्य से जुड़े हैं वे उन इलाको में मोटी रकम देकर अपना पोस्टिंग कराते हैं, ताकि नक्सलियो से मिलकर गरीबी के विकास की राशी को लूट सके।

2 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

देश के श6ुओं के प्रति जिस विमार मानसिकता का सिकार आज तक सेकुलर गिरोह रहा लगता है वही विमारी अब नितिस जी को लगा चिकी है । नितीस जी समझना चाहिए क अगर आज सरकार अगर अपने ही बनाय गिरोह को छोड़ कर देशहित में सही कदम उठाने को त्यार है तोफिर उसका इन हालात में सभी देशभक्त लोगों को साथ देना चाहिए ताकि सरकार व सुरक्षावलों का मनोबल युद्ध की इस घड़ी में वना रहे।

सागर ने कहा…

sehmat sir,

par aapke mel ka kya hua ? need your phone number or e-mail id.

Saagar