शनिवार, जुलाई 21, 2012

जीवन जीने के लिए मिला है खोने के लिए हमारे आपके पास बहुत कुछ है


ऱाष्ट्रपति चुनाव के दिन विधानसभा में डियूटी लगी हुई थी सुबह 9बजे विधानसभा पहुंचा और घर पहुंचते पहुंचते रात के 10बजे गये।इस दौरान हलात बिहार पुलिस के जबान से कम नही था लगातार खड़े रहो ।शुक्र रहा पत्रकार मित्रो का जिन्होने पूरानी याद को बया कर जमकर हंसाया, इतनी हंसी याद नही कब आयी थी।घर पहुचते पहुचते किसी काम के लायक नही रह गया था, लेकिन आदतन टीवी खोलकर पूरे दिन का हाल जानने बैंठ गया सभी चैनलो पर  राजेश खन्ना छाये हुए थे देखते देखते कब नींद आ गयी पता ही नही चला । अचानक मोबाईल की घंटी बजने लगा अमूमन देर रात मोबाईल की घंटी बजने पर एक से दो रिंग में उठा लेते हैं लेकिन लगता है शायद उस दिन अंतिम रिंग के दौरान मोबाईल उठाया सर मैं बर्डीगार्ड राजीव बोल रहा हूं मैंडम हाथ काट ली है और साहब का मोबाईल नही लग रहा है अचानक नींद में लगा कोई खोलता हुआ गर्मी पानी डाल दिया ।
आनन फानन में मोबाईल लेकर विस्तर से बाहर निकला लेकिन पत्रकार की पत्नी समझे नही ऐसा तो सम्भव नही था जब तक बाहर निकलते वह भी बाहर आ गयी क्या हुआ है कोई घटना घट गया है क्या किसी तरह से उसे झाझा देकर बाहर बालकोनी में पहुंचा और फिर राजीव से पुंछा मैंडम किस हाल में है सर बेहोश है पास में जो भी बड़ा अस्पताल है ले जाओ एसीपी को हम खुद फोन कर रहे है तुम लेकर बढो।
इस दौरान किसी तरह मैंडम के साहब से भी बात हो गयी वे विशेष मिशन में बाहर निकले थे काम छोड़कर वापस चल पड़े इस दौरान कम सुबह हो गया पता ही नही चला डांक्टर ने सुबह कहा कि अब चिंता करने की जरुरत नही अब मैंडम पूरी तरह खतरे से बाहर है।मित्रो मैंडम का परिचय है एक ईमानदार अधिकारी का है इनके प्रशासनिक क्षमता का उदाहरण दिया जाता है। सभी क्षेत्रो में बेहतर है लेकिन उन्हे अपने पति पर हर वक्त यह शंक रहता है कि किसी और के साथ कोई चक्कर तो नही चला रहा है या फिर कोई उसे फसा तो नही रहा है।अमूमन आज की युवा पीढी जो काम करते है इस बिमारी से ग्रसित है लड़किया कुछ ज्यादा ही परेशान है ।
ऐरेंज मैरेज हो या फिर लभ मैंरेज ही क्यो न हो दोनो परेशान है,ऐरेंज मैरेज वाले को इन समस्याओ से लड़ने के लिए कुछ वक्त मिलता है और फिर दोनो परिवार और रिश्तेनाते होते है जो स्थिति सम्भालते रहते है लेकिन लभ मैंरेज करने वाले के साथ कोई नही होता है और उन्हे अपने हलात से खुद लड़ना पड़ता है।यह बिमारी अब महानगरो से कसबे तक पहुंच गया है काम करने वाले 80 फिसद्दी शादी शुदा जोड़ा आज इस द्वव्द से गुजर रहा है। कही पति घूटन महसूस कर रहा है तो कही पत्नी।
विदेशो में तो सरकार की औऱ से कई तरह से स्पोट सिस्टम मौंजूद है या फिर वहां के समाज ने इसको स्वीकार कर लिया है ।लेकिन हमारे यहां कुछ भी अनुकुल नही है आज भी अकेले जीवन जीने के बारे में सोचा नही जा सकता है ऐसे हलात में इस बिमारी का क्या इलाज हो सकता है। पुरुष इस मामले में इनता कमजोर है कि बहुत कुछ चाह कर भी बहुत कुछ नही कर पाता है। समाज के बदलाव को अभी भी वह पूरी तौर पर आत्मसात नही कर पाया है, महिलाओ के साथ रिश्ते बनाने में अभी भी वह सहज नही हो पाया है। साथ काम करते करते कब दोस्ती प्यार में बदल जाता है पता ही नही चलता है।हलाकि समय समय पर समाज इस बिमारी का इलाज खुद करता रहता है लेकिन इसके इलाज की प्रक्रिया मनुष्य के निर्माण के साथ शुरु हुआ है वह आज भी जारी है ।और लगता है जब तक मनुष्य है खोज जारी रहेगा।बेहतर है इस रिश्ते को अपने अंदाज में चलने दिजिए जीवन बहुत किमती है फिर यह जीवन मिलेगा की नही किसी ने नही देखा है ।ऐसे में इस बहुल्य जीवन को महज रिश्ते में आ रहे बदलाव के कारण खत्म कर ले जायज नही है ।महिला और पुऱुष दोनो को यह समझने की जरुरत है जीवन मिला है कुछ करके जाओ, प्यार किया है तो निभाने की कला सीखो और कोई रिश्ता टूटने है तो नये रिश्ते बनाने की कला सीखे इसी में बेहतरी है