मैं लव्जों में कुछ भी इजहार नही करती
इसका मतलब ये नही की मैं तुझे प्यार नही करती
चाहती हुँ मैं तुझे आज भी पर ,
तेरी सोच में अपना वक्त वरवाद नही करती
तमाशा न बन जाये कही मोहब्बत मेरी
इसलिए अपने दर्द को नामोदार नही करती
जो कुछ मिला है उसी में खुश हु मैं,
तेरे लिए खुदा से तकरार नही करती,
पर कुछ तो बात हैं तेरी फितरत में जालिम,
वरना मैं तुझे चाहने की खता बार बार नही करती।
सामाजिक मान्यताओं के द्वन्द से जुझ रही यह एक ऐसी लङकी की व्यथा हैं जिसका होने वाला पति शादी के पूर्व साथ साथ शादी की खरीदारी करना चाहता हैं।एक दूसरे के पसंद का सेरवानी और लहंगा चुनङी लेना चाहता हैं। लेकिन सामाजिक मान्यताओं के आगे विवश हैं,क्यों कि इस युग में भी इसकी इजाजत नही हैं।शादी की खरीदारी को लेकर अभी भी लङकियों के पसंद का कोई मतलव नही हैं।लङके वाले आज भी शादी की खरीददारी में होने वाली बहु या फिर भाभी की दखल अंदाजी पसंद नही करती हैं।लङके को थोङी आजादी अवश्य मिली हैं अब वे अपने पंसद के कपङे और अन्य सामग्री खुद खरीदने लगे हैं।लेकिन जिसके साथ जिंदगी की नयी पारी शुरु करनी हैं उसकी पंसद का आज भी कोई मतलव नही हैं।किस कलर और डीजाईन का टीवी,फ्रिज,वाशिंग मशीन,कार और किचेन की सामग्री लेनी हैं आज भी इसकी खरीदारी में लङकी की राय नही ली जाती हैं।इस मामले में कोई लङका अपने होने वाली पत्नी के इक्छा का ख्याल भी करता हैं तो दोनों पक्ष इस मामले में उसकी दखलअंदाजी पसंद नही करते हैं।खुलेपन के इस दौङ में भी 99 प्रतिशत लङके और लङकिया जीवन शादी अपने पसंद से खोजने के रिक्स से आज भी बच रहे हैं।इसका यह मतलव कतई नही हैं कि आज के अभिभावक अपनी दलील जिस तरह से उनके अभिभावक ने थोपा उसी तरह से आप भी बच्चों पर थोपते रहे।टेकनोलोजी बदली हैं बच्चें आत्मनिर्भर हो रहे हैं।ऐसे में बच्चों की राय को अहमियत दी जानी चाहिए नही तो आने वाले समय में जीवन साथी पंसद करने के अधिकार पर भी सवाल खङे होने लगेगे।और उस हलात में अभिभावक की यह आखिरी बंदिश भी तास की पत्तों की तरह बिखर जायेगा।समय के साथ साथ अपने मान्यताओं में बदलाव को स्वीकार करते हुए चलने की आदत आज के अभिभावकों को ङालनी चाहिए।
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4 मिनट पहले
2 टिप्पणियां:
Aap mere blog par aaye aur apna mantavya diya iske liyr aabhar.
Nav varsh mangalmay ho.
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