रविवार, अगस्त 02, 2009

मीडियाकर्मी अपने को धंधेबाज माने तो लोगो को गुरेज कहा हैं

मौका था नये बिहार की पहचान बढाने में मीडिया की भूमिका विषय पर आयोजित सेमीनार का देश के कई जाने माने पत्रकार इस सेमीनार में भाग लेने बिहार आये हुए थे।अपनी लेखनी से बिहार के विकास को महिमामंडित करने वाले पत्रकारों का इस सेमीनार में सुर ही बदला हुआ था। आयोजक परेशान थे आखिर हो क्या रहा हैं इतना बड़ा तामझाम मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के महिमामंडित के लिए आयोजित की गयी थी लेकिन वक्ताओं ने फिजा ही बदल दी।पटना संस्करण के हिन्दुस्तान टाइम्स के स्थानीय संपादक मैमन मैथ्यू ने लोगो को पटना से बाहर गांवों में विकास की क्या गति हैं यह देखेने की सलाह दी।इन्होने खुले मंच पर स्वीकार किया कि बिहार में भ्रष्टाचार लालू के शासन काल से भी काफी बढ गया हैं।पुण्यप्रसून वाजपेयी ने मीडियाकर्मीयों को सलाह दिया की वे गांव की भाषा बोले।बिहार के नेता बिहार का विकास नही चाहते हैं।एनडीटीवी के एग्जीक्यूटीव एडिटर संजय अहिरवाल ने कहा कि सड़क बनाने का काम सरकार का हैं ही इसके लिए खुश होने की जरुरत नही हैं यह देखे की आपकी सरकार आपकी जो मूल भूत जरुरते हैं उसके लिए क्या कर रही हैं।सेमीनार के दौरान कई ऐसे सवाल सामने आये जिससे नीतीश के विकास के दावे की कलई खुल गयी।लेकिन सबसे अहम सेशन दर्शक दिर्घा में बैंठे आम लोगो द्वारा डैंस पर बैठे मीडिया के पुरेधा से सवाल पुछने का रहा। सबों का एक ही सवाल था पटना की सड़कों पर महिला को सरेआम अपमानित करने की खबड़ों को आपने जिस तरीके से दिखाया और लिखा क्या वह सही हैं।आप समाज को नैतिकता का पाढ पढाते हैं और अपने आप को लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ मानते हैं।अपनी बात जनता के हवाले से लिखते और दिखाते हैं आपकी कोई नैतिक जवावदेही नही बनती हैं।आप सबों को जिम्मेवारी का एहसास कराते हैं और आप गैर जिम्मेदराना हरकत करते हैं।बड़ो बड़ो को सवालों से घरने वाले देश के जाने माने पत्रकार आज खुद सवालों के घेरे में इस तरह उलझते दिखे की उनकी बोलती बंद हो गयी।हिन्दुस्तान के स्थानीय संपादक अक्कू श्रीवास्तव ने कहा कि मीडिया समाज का हिस्सा हैं मीडिया को कटघरे में खड़े करने से पहले अपनी और देखने की जरुरत हैं।इस जवाव से बड़ा बबेला मचा स्थिति असमान्य होते देख शब्दों का जादूगर पूण्यप्रसून बाजपेयी नें मौर्चा सम्भाला और कहा कि आप समझे इस बात को कि हम भी काम धंधा करने वाले लोग हैं।सविधान में सौ से अधिक संशोधन हो चुके हैं।सत्ता के साथ फिट नही बैंठे तो बाहर फैंक दिये जाते हैं।मीडिया पर सत्ता न्यायायल,बाजार का अपना दबाव काम कर रहा हैं।ऐसे में आप क्या सोचते हैं कि मीडिया के उपर निर्भर रह कर अपने कर्तव्यों की इति श्री मान ले।बाजपेयी के इस जादुगरी से स्रोता तो शांत हो गये लेकिन एक सवाल जो पूरी शिद्दत के साथ लोगो ने रखा कि आप स्वीकार तो कड़े की आप भी धंधेवाज हैं तो फिर कहा परेशानी हैं सवाल तो तब उठता हैं जब आप समाज को नैतिकता का पाढ पढाने लगते हैं।आप अपने धंधे को अपने फायेदे के लिए कड़े इसमें लोगो को कहां परेशानी हैं परेशानी तो तब खड़ी होती हैं जब आप किसी समाजिक मुद्दे पर अपनी राय थोपते हैं।

1 टिप्पणी:

hem pandey ने कहा…

मीडिया को अपनी इज्जत बनाए रखने के लिए स्वयं कदम उठाने होंगे.