यूनीसेफ एक ऐसा नाम हैं जिसके बारे में नही जानने वालो की संख्या शायद हजार में हो।पोलियो अभियान हो या फिर सर्वशिक्षा अभियान जिसके माध्यम से जहां हमारे तंत्र की पहुंच नही हैं वहां यूनीसेफ की टीम निष्ठा से काम करते हुए दिख जायेगी।विटामिन ए पिलाने का अभियान हो या फिर बच्चों के टीकाकरण का सवाल हो यूनीसेफ के कार्यकर्ता गांव गांव में मिल जायेगे। वही आशा की ट्रेनिंग के माध्यम से पूरे देश में इसका एक नेटवर्क हैं कहने का मतलव यह हैं कि यूनीसेफ शिक्षा और स्वास्थय की धराओं को गांव गांव तक पहुचाने में हमारी सरकार से और उसकी मशीनरी से काफी आगे हैं।वही दूसरी और यूनीसेफ इतने संवेदनहीन हैं शायद आप सोच भी नही सकते हैं। जिस चुहिया की तस्वीर यूनीसेफ ने वर्ष 2006में अपने पत्रिका के कभर पेज पर लगा कर पूरे विश्व के सामने हमारे गरीबी और भूखमरी को बेचा वह चुहिया आज भी पटना की सड़कों पर रिक्शा वाले के लिए खाना बनाने का काम करती हैं।उसकी झूठी बर्तन को साफ कर अपने परिवार का भरन पोषण करती हैं फिर भी सपना हैं शिक्षक बनकर बच्चों को पढाने का।चूहिया का यह हौसला हमारे आज की पीढी के लिए मार्गदर्शक का काम करेगी।लेकिन यूनीसेफ जिस ताम झाम से चूहिया के गरीबी को प्रचारित किया और भरोसा दिलाया की चूहिया को पढाने और वेहतर जीवन के लिए जो भी आवश्यकता होगी यूनीसेफ वहन करेगी ।लेकिन यूनीसेफ भी राजनेता की तरह चूहिया के गरीबी और वेचारगी का उपहास ही उड़ाया।इन सब बातों से बेखबर चूहिया को दुख हैं तो सिर्फ इस बात कि, की उसके पिता ने बड़े प्यार से उसका नाम चुनचुन रखा था जो कही खो गया।वही दूसरी और उसे अपने जिदगी से भी कोई शिकायत नही हैं लेकिन जिस तरीके से उसका नुमाईस किया गया उसको लेकर थोड़ी शिकायत जरुर हैं।कहने का अर्थ यह हैं कि आप जिस सेवा भाव को पदर्शित करते हैं उसके प्रति आप कितने संवेदनशील हैं चूहिया के साथ जो कुछ भी हुआ वह समझने के लिए काफी हैं।लेकिन यह सब इसलिए हो रहा हैं कि हमारे राजनेता समाजिक न्याय और गरीबी मिटाने का नारा दे सकते हैं लेकिन इस और कोई पहल नही करेगे।ऐसे हालात में यूनीसेफ जैसी संस्था आपका मजाक उड़ाकर अपना धंधा चला रहा हैं तो आप किस नैतिक बल के सहारे इसकी आलोचना कर सकते हैं।यह एक संवेदनशील भारतीयों की भावना हैं जिन्हें यूनीसेफ के इस धंधे से दुख हुआ हैं।
1 टिप्पणी:
Jankar ascharya bhi hua aur dukh bhi.
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