रविवार, नवंबर 08, 2009

किसने कहा प्रभाष जी इस दुनिया से चले गये



प्रभाष जी को पत्रकारिता के क्षेत्र का गांधी कहे तो कोई अतिशियोक्ति नही होगी ।आने वाले समय में जब भी क्रिकेट पर बात होगी, देश के शासन व्यवस्था को लेकर लिखी जायेगी या फिर भारत के आर्थिक सामाजिक और विदेश नीति पर लिखने की बात आयेगी तो एक बार लोगो के जेहन में यह अवश्य आयेगा कि प्रभाष जी इस अंदाज में लिखते या फिर प्रभाष जी इस मसले को इस तरह से सोचते।कहने का मतलब यह हैं कि प्रभाष जी ने पत्रकारिता के क्षेत्र में वो महल खड़ा कर दिया हैं जिसके सामने दुनिया की सबसे बड़ी इमारत भी बौंनी लग रही हैं।


मुझे लगता हैं कि इस दुनिया में मौंत ही एक मात्र सत्य हैं जिसे झुठलाया नही जा सकता। भले ही प्रभाष जी अब टीवी स्क्रीन और अखबारों में बेवाकी से लिखते हुए नही दिखे। लेकिन आने वाले सौ साल बाद भी पत्रकार कितना भी भ्रष्ट क्यों न हो जाये उसके जुबान और कलम पर प्रभाष जी की झलक दिख ही जायेगी।इनकी यही कृत्ति इन्हे पत्रकारिता का गांधी होने का गुरुर प्रदान करती हैं।कौन कहता हैं कि प्रभाष जी इस दुनिया से चले गये आज भी और अभी भी हमारे बीच उसी अंदाज में धोती पहने खड़े हैं ।और चुनौती दे रहे हैं अखबार में काम करने वाले पत्रकारों को, टीवी चैनल के एंकर और रिपोर्टर को कह रहे हैं मद्दा हैं तो प्रभाष जोशी बनकर दिखाओं।

आज पटना में पत्रकारों के बीच यह चर्चा आम रही कि दैंनिक जागरण अखबार ने प्रभाष जी के बारे में एक खबड़ तक नही लिखा। शायद गुप्ता परिवार को लग रहा होगा कि हमारे नही छापने से प्रभाष जी की लोकप्रियता में बड़ी सेंधमारी हो जायेगी।इनकी नादानी पर हंसी आती हैं बाबू अखबार के पीछे के पन्ने पर पूरे खानदान का नाम प्रबंध संपादक से लेकर स्थानीय संपादक तक क्यों न छपवा लों लोग कहेगे ही कि यह कविता और संपादकीय इसके बाप की लिखी हुई नही हैं।पैंसा है अखबार की फैक्ट्री लगा सकते हो लेकिन बाजार में प्रभाष जोशी जैसा संस्कार नही बिकता हैं जो खरीद लोगे।वक्त अभी बहुत बाकी हैं पत्रकारिता के बल पर पैंसा लूटने वाले जल्द ही इस क्षेत्र से भांगते नजर आयेगे प्रभाष जोशी का भूत इन्हें पीछा छोड़ने वाला नही हैं। प्रभाष जोशी ने एक नही, सौं नही हजार नही ,लाख नही ,करोड़ो ऐसे पाठक पैंदा करके गये हैं जो इन्हे पत्रकारिता करने पर मजबूर कर देगी।खैर छोड़िये बात करते करते कहां चले गये सवाल तो प्रभाष जी के जाने का हैं।

मुझे आज भी याद हैं तारीख 9मई 2000 समस्तीपुर जिले में बाढ आयी हुई थी प्रभाष जोशी और रामबहादुर राय रोसड़ा आये थे बाढ के हलात पर लिखने के लिए और लोगो से बाढ के स्थायी समाधान पर वहस करने के लिए।स्थान था भरतदास मंदीर परिसर में तील रखने की जगह नही थी बाढ पीड़ितों के साथ साथ आसपास के लोग आये हुए थे।कार्यक्रम की शुरुआत बाढ पीड़ितों के आप बीती से हुई और अंत प्रभाष जोशी के दमदार भाषण के साथ। प्रभाष जोशी के भाषण के दौरान सभा स्थल पर मौंजूद फटेहाल और कई दिनों से तटबंध पर शरण लिए हुए ग्रामीणों में लगा जैसे दूसरा गांधी उनके बीच हो सबों के जुबान पर बस एक ही नारा था जोशी बाबा इस दर्द से मुक्ति दिलाओं।

उस वक्त मेरी नयी नयी शादी हुई थी और अपनी पत्नी को प्रभाष जोशी का भाषण सुनाने ले गया था हलाकि उसे इक्छा नही थी उसे लग रहा था कि एक पत्रकार को देख ही रहे हैं तो दूसरा कैसा हो सकता हैं।लेकिन प्रभाष जोशी की बात सून कर पत्रकारों को लेकर उसकी पूरी धारना ही बदल गयी और आज पत्रकारिता के लिए कुछ भी कर पा रहा हू तो उसमें मेरी पत्नी की भूमिका कम कर नही आंकी जा सकती हैं ।क्यों कि हर वक्त वो जोशी जी के आदर्शों को याद दिलाती रहती हैं।यह कैसा संयोग हैं जिस दिन सुबह जोशी जी के मरने की खबर मिली उसी दिन आंफिस जाने पर मुझे प्रमोशन दिये जाने की सूचना दी गयी । लेकिन पूरे घर में खामोशी छाई हुई हैं सिर्फ एक ही चर्चा हो रही हैं किस तरह प्रभाष जोशी और राम बहादुर राय खूले आकाश के नीचे मछरदानी लगा कर सोने की जिंद करते रहे यह कहते हुए कि ऐसी स्वच्छ हवा दिल्ली में मिलती कहा हैं।काफी दिनों बाद आकाश को देखने का अवसर मिला हैं इतनी तारा को कब देखा याद भी नही हैं।घर को लोग चितित थे कि ओस में सोने पर कही इन लोगो की तबियत न बिगड़ जाये ।लेकिन दो दिनों के निवास के दौरान कभी भी जोशी जी को खांसी होते नही देखा।बाद के दिनों में इन्होने अपनी नियमित कांलम में रोसड़ा की यात्रा को लिखा था।प्रभाष जी पढे लिखे के बीच ही नही गांव के किसान के बीच भी उतने ही लोक प्रिय हैं जितने उनके कांलम पढने वाले पाठकों के बीच, ऐसे में कोई इतनी जल्दी कैसे जोशी जी के इस जहां से चले जाने की बात स्वीकार कर ले।

2 टिप्‍पणियां:

Mukesh hissariya ने कहा…

जय माता दी,
प्रभाष जी का जीवन अनुकरणीय है-मेरी विनम्र श्रद्धांजलि- संतोष जी आपने उनके विषय मे हमारी जानकारी मे वृद्धि की. आपके हुनर को प्रमोशन मिला अच्छा लगा सुनकर .इसी तरह आगे बढ़ें यही दुआ है हमारी.

सागर ने कहा…

शुक्रिया... अच्छी जानकारी... प्रभाष जोशी जी के जाने का ग़म सबको घेरे हुए है... एक महान पत्रकार सिर्फ अपने पेशे में ही नहीं समाज और विश्व जगत पर भी उतनी ही अमिट छाप छोड़ता है...

आपका प्रोमोशन हुआ... बधाई हो... उम्मीद करता हूँ जो 'संयोग' की बात कर रहे हैं... जो जुडा रहे... जोशी जी के बताये राह पर चलते रहें...

हाँ... कृपया ब्लॉग पर भी रेगुलर रहें तो कृपा होगी...