शनिवार, नवंबर 28, 2009

नीतीश के बेचैनी का राज खुलने लगा हैं


नीतीश कुमार इन दिनों कुछ ज्यादा ही बैचेन दिख रहे हैं।हो भी क्यो न चुनावी साल हैं और विधान सभा उप चुनाव में मिली करारी हार से अभी भी उबर नही पाये हैं।फिर भी उनसे अलोकतांत्रिक व्यवहार की उम्मीद तो नही ही जा सकती हैं।लेकिन इन दिनों इन्होने कई ऐसे कदम उठाये हैं जो उनके लोकतात्रिक चरित्र से मेल नही खाता हैं।यह मेरे लिए भी खोज का विषय था कि आखिरकार नीतीश कुमार जैसे राजनेता जिसे देश का भावी नेता माना जाता हैं इस तरह का व्यवहार क्यों कर रहे हैं। सबसे बड़ा मसला सूचना के अधिकार कानून में संशोधन से जुड़ा हैं बिहार देश का पहला राज्य हैं जिन्होने सूचना के अधिकार पर कैंची चलायी हैं और इसे सीमित करने का प्रयास किया हैं।लेकिन दुर्भाग्य यह हैं कि इस मसले पर बिहार के बुद्धिजीवी और पत्रकार पूरी तौर पर खामोश हैं।इस संशोधन को लेकर ब्लांग पर जो लिखना था वह तो लिख कर मैंने अपनी भ्रास मिटाली। लेकिन यह सवाल मेरे जेहन में बार बार उठ रहा था कि आखिरकार नीतीश जी ऐसा क्यों किये।इस सवाल का हल ढूढने में लगा ही हुआ था कि एक दिन पूर्व विधायक उमाधर सिंह का फोन आया कहा हैं संतोष जी, सर पटना में ही हैं मैं भी पटना आया हूं और होटल गली में न्यू अमर होटल के कमरा नम्बर 16 में ठहरा हूं।कलम के इस शेर से मेरी बड़ी बनती थी लेकिन पटना आने के बाद बातचीत कम हो गयी थी।काम निपटा कर शीघ्र ही होटल पहुंचा बातचीत शुरु हुई तो पता चला कि सूचना आयोग के मुख्यआयुक्त इनसे मिलना चाहते हैं।बात शुरु हुई तो मेरे पेर के नीचे से जमीन खिसकने लगी और जिस सवाल का जवाव ढूढने को लेकर मेरी नींद हराम थी उस सवाल का हल मिलते दिखने लगा ।जैसे जैसे बात आगे बढती जा रही थी नीतीश में आये बदलाव का राज खुलता जा रहा था।


इन्होने योजना एवं विकास विभाग से नीतीश के कार्यकाल के दौरान हुए विकास और इकोनोमीग्रोथ के बारे में सूचना मांगा। लेकिन विभाग सूचना देने को लेकर टालमटोल करता रहा जब विभाग पर कारवाई की बात होने लगी तो विभाग ने वित्त विभाग के पास इनका आवेदन भेज दिया। वित्त विभाग भी इनके आवेदन पर टाल मटोल करता रहा लेकिन जब मामला अपीलीय कोर्ट में चला गया तो आनन फानन में वित्त विभाग ने इनके आवेदन को गैर सरकारी संगठन आद्री के पास भेज दिया ।और आग्रह किया कि इनके प्रश्न का जवाव दे दे।आद्री बिहार के आर्थिक बदलवा पर शोध करने वाली संस्था हैं और इन दिनों नीतीश चलीसा पढने में महारत हासिल किये हुए हैं।शैवाल गुप्ता इसके चीफ हैं,लेकिन सवाल का जवाब सूचना के अधिकार के तहत देना था तो इन्होने कानूनी पचरे में पड़ने के बजाय पूरी सूचना मुहैया करा दिया।सूचना काफी चौकाने वाली और विकास पुरुष नीतीश कुमार की कलई खोलने वाली थी।जरा आप भी रिपोर्ट को देखे---------

बिहार एक कृषि प्रधान राज्य हैं और यहां की 90 प्रतिशत अबादी कृषि पर आधारित हैं लेकिन कृषि के क्षेत्र में विकास दर दिन प्रतिदिन कम होती जा रही हैं।

वर्ष-2004—2005—4.47प्रतिशत इकोनोमी ग्रोथ कृषि के क्षेत्र में था।

वर्ष-2005-2006—3.66प्रतिशत इकोनोमी ग्रोथ कृषि के क्षेत्र में था।

वर्ष 2006—2007—1.62प्रतिशत इकोनोमी ग्रोथ कृषि के क्षेत्र में

इस तरह यह आंकड़ा बता रहा हैं कि बिहार में कैसा विकास हो रहा हैं।इसी तरह अर्थशास्त्र के द्वितीय सेक्टर उधोग के ग्रोथ का भी यही हाल हैं हलाकि आकड़े की माने तो ग्रोथ 4.06प्रतिशत से बढकर 11.13दिखाया गया हैं। लेकिन आकड़ो में बढोतरी के बारे में लिखा हैं उसमें उधोग के विकास के बारे में कुछ भी जानकारी नही दी गयी हैं।खुद आद्री ने लिखा हैं कि यह बढोतरी शहरों में भवनों निर्माण में तेजी आने के कारण हुई हैं।वही तीसरे सेक्टर में टेलीकोमनिकेशन, बैंकिग और ट्रान्सपोर्ट के क्षेत्र में .10प्रतिशत की बढोत्तरी दिखायी गयी हैं।अर्थशास्त्र के विशेषज्ञों की माने तो यह ग्रोथ काले धन के फ्लो को दिखा रहा हैं। यह रिपोर्ट सरकार के तमाम रिपोर्ट कार्ड के दावे की कलई खोल कर रख दी हैं।अब मेरे समझ में आया कि नीतीश सूचना के अधिकार पर कैंची क्यों चलाये।बातचीत आगे बढी तो नीतीश से रही सही उम्मीद पर भी ग्रहन लग गया।योजना मद से जुड़े सूचना में सरकार की मशीनरी तो हद कर दी हैं।बिहार सरकार ने जो केन्द्र सरकार को लेखा जोखा भेजा या फिर विधानसभा के पटल पर जो लेखा जोखा रखा और सूचना के अधिकार के तहत जो जानकारी दी गयी तीनों अलग अलग हैं।उमाधर सिंह ने सूचना आयुक्त से पूछा हैं कि आखिरकार इन तीनों सूचना में कौन सी सूचना सही हैं ।इसी मसले पर बातचीत करने के लिए मुख्यसूचना आयुक्त इन्हे मिलने के लिए बुलाया था।मामला आगे न बढे इसको लेकर कई तरह का आफंर उमाधार सिंह को दी जा रही हैं।अब आप समझ सकते हैं कि बिहार की जनता को आकड़ों के सहारे किस तरह छला जा रहा हैं।बातचीत आगे बढी तो मीडिया के नीतीश परस्त होने का भी राज खुल गया हैं।इन्होने सूचना के अधिकार के तहत मांगा कि मीडिया को पिछले तीन वर्षों के दौरान किनता विज्ञापन सरकार की और से मिला हैं आकड़े चौकाने वाले हैं।पचास करोड़ प्रिट मीडिया को और तीन करोड़ रुपया का विज्ञापन इल्कट्रानिक मीडिया जो दिया गया हैं।विज्ञापन के अन्य माध्यमों को जोड़ दे तो लगभग सौं करोड़ खर्च सिर्फ सरकार के उपलब्धियों के प्रचार प्रसार पर किये गये हैं।अब आप ही बताये जिस प्रदेश की आधी से अधिक आबादी की औसत आमदानी रोजाना बीस रुपया से कम हैं वहां सरकार प्रचार प्रसार पर सौ करोड़ रुपये खर्च करती हैं।यही नीतीश के विकास का सच हैं जिसके सहारे दूसरी बार सत्ता में आना चाह रहे हैं।

5 टिप्‍पणियां:

Alok Nandan ने कहा…

तो क्या विकास बाबू का विकासी नारा कागजी आंकड़ों तक ही है....??? बेहतर तथ्य परक रिपोर्ट को पढ़ने को मिला, धन्यवाद।

वन्दना अवस्थी दुबे ने कहा…

अच्छा लेखा-जोखा.

मनोज कुमार ने कहा…

अच्छी जानकारी। धन्यवाद।

सागर ने कहा…

वर्ष-2004—2005—4.47प्रतिशत इकोनोमी ग्रोथ कृषि के क्षेत्र में था।

वर्ष-2005-2006—3.66प्रतिशत इकोनोमी ग्रोथ कृषि के क्षेत्र में था।

वर्ष 2006—2007—1.62प्रतिशत इकोनोमी ग्रोथ कृषि के क्षेत्र में

चिंतनीय और निंदनीय भी ...
आंकड़े वाकई चौकाने वाले हैं... दिमाग खोल कर काम करना होगा... सूचना का अधिकार पर कैंची चला कर कब तक छुपे रह सकेंगे ? और यह कोई समाधान भी नहीं है...

AVshek ने कहा…

कृपया यह भी देखते हैं, मालिक......
Bihar is Indias new miracle economy

TIMES NEWS NETWORK


Bihar is the new miracle economy of India. In the five-year period between 2004-05 and 2008-09 , Bihars GDP has grown by a stunning 11.03%, way beyond the definition of 7% growth for a miracle economy . In this period, Bihar traditionally a laggard state that actually saw a 5.15% negative growth in 2003-04 is the second fastest growing state, just a shade behind Gujarats well-publicised growth of 11.05%.
The latest CSO data gives out this dramatic story of Bihar on steroids. This high growth period also coincides with Nitish Kumar taking up the reins as chief minister of Bihar from Lalu Yadav . It can, therefore, be said that good governance can work miracles for even the most backward states. Not just Bihar , most of the traditionally backward states, including Orissa, Uttarakhand, Uttar Pradesh, Chhatisgarh and Jharkhand , have done well in this period, indicating a more inclusive growth at an all-India level.
There is no official data on poverty beyond 2004-05 . So, the CSO data on the economic growth of the states, highlighting the fact that five of Indias most backward states have grown at a rate beyond 7%, provides pointers to some kind of poverty mitigation. Apart from Bihar , the growth rate of the other four are: Uttarakhand 9.31%, Orissa 8.74%, and Jharkhand 8.45%. The all-India growth during this period was 8.49%.