गुरुवार, जुलाई 16, 2009

नीतीश जी यह कैसा सुशासन है

यह कोई फिल्मी कहानी नही है एक हकीकत हैं जिसे सामने लाने को कोई तैयार नही हैं।प्रिंट मीडिया को नीतीश के सुशासन के अलावे सूबे में और कुछ नही दिख रहा हैं। यही स्थिति समाचार चैनलों का हैं और राष्ट्रीय चैनलों का हाल तो कहना ही नही हैं उन्हे तो प्रोफाइल चाहिए और आरुषी जैसी स्टोरी चाहिए।लेकिन पिंकी न तो बड़े बाप की बेटी हैं और ना ही आरुषी की तरह किसी नामी गरामी कांन्भेन्ट स्कूल की छात्रा हैं।यह तो बिहार के दरभंगा जिले की एक सरकारी स्कूली की सातवी कक्षा की छात्रा हैं जिसका आज से दो वर्ष पूर्व स्कूल जाने के क्रम में अपहरण हो गया था।बिहार के लिए अपहरण कोई बड़ी खबर नही हैं वह भी मामला लड़की के अपहरण का हो तो पुलिस से लेकर समाज तक प्रेम प्रसंग का मामला मान कर खामोश बैठ जाती हैं। पिंकी के साथ भी यही हुआ घटना 15 मई 2007 की हैं उस वक्त मैं भी दरभंगा में ही पदस्थापित था पिंकी के अपहरण की सूचना लेकर एक बेबस और लाचार बाप सूबह सूबह मेरे आवास पर आया मैं भी इस मामले को फौड़ी तौर पर प्रेम प्रसंग का मामला मान कर आस पास के लड़को के साथ भाग जाने की बात कहते हुए मामले को मैं भी लगभग खारिज ही कर दिया था।लेकिन जब कभी मैं न्यूज के सिलसिले में पुलिस के आलाधिकारी के पास जाता था पिंकी के पिता अपने तरीके से बेटी की सकुशल रिहाई की गुहार लगाते हुए अक्सर दिख जाता था।मामला प्रेम प्रसंग का ही क्यों न हो एक बेटी के लिए बाप के मन इतनी बैचेनी देख मेरी संवेदनाये जग गयी और मैं इस मसले को लेकर खबड़ दिखाना शुरु कर दिया खबड़ चलते ही इसके मदद के लिए राजनैतिक दल के लोगो के साथ साथ कई और लोग सामने आये। मामले की गम्भीरता मुझे तब समझ में आयी जब खबड़ को नही चलाने को लेकर कई तरह का प्रलोभन मुझे दी जाने लगी।मैं सोचने लगा की इस खबड़ को लेकर इतनी बैचेनी क्यो हैं।पता चला इस मामले में जिस लड़के का नाम आ रहा हैं वह एक बड़े शिक्षा माफिया का बेटा हैं।लेकिन इन सब बातों का कोई असर नही दिखा हार कर पिंकी का पिता कोर्ट के शरण में गये जहां कोर्ट ने दरभंगा एस0पी0को प्राथमिकी दर्ज करने का आदेश दिया इस मामले का दुखद पहलु यह भी हैं की उस वक्त दरभंगा की एस0पी0महिला ही थी लेकिन इन्हे न्याय नही मिला।मामला दर्ज हुए कई माह बीत गये लेकिन नामजद अभियुक्तों पर कोई कारवाई नही हुई लेकिन पिंकी के पिता ने हार नही मानी और तत्तकालीन आई0जी0 आर0एल कनौजिया से मिलकर आप बीती सुनाई आई0जी0 पूरे मामले में पुलिस के उदासीन रवैये को लेकर नराजगी व्यक्त करते हुए तत्तकाल सभी नामजद अभियुक्तों को गिरफ्तार करने का आदेश दिया लेकिन अभियुक्तों के नजायज कमायी के आगे आई0जी0 का आदेश भी थानेदार के पोकेट में महिनों घुमता रहा। इस बीच आई0जी0 कनौजिया का तवादला हो गया और उनकी जगह आये गणेश प्रसाद यादव। कुछ होता नही दिख पिंकी के पिता मुख्यमंत्री के जनता दरवार में न्याय की गुहार लेकर आये। मैं भी पटना आ गया था जब जब ये जनता दरबार में आये मैं खबड़ दिखाता रहा लेकिन कोई कारवाई नही हुई। हद तो तब हो गयी जब आई0जी0पूरे मामले को ही झूठा करार देते हुए पिंकी के पिता पर ही झूठा मुकदमा दायर करने के आरोप में मुकदमा चलाने का आदेश निर्गत कर दिया।इस मसले को लेकर पिंकी के पिता 13बार मुख्यमंत्री से मिले लेकिन न्याय नही मिला और अंत में मुख्यमंत्री भी खड़ी खोटी सुना कर बाहर कर दिये। फिर भी हार नही माना राज्य महिला आयोग में शिकायत दर्ज कराया और जिले में चलने वाले जनता दरबार में जाकर पुलिस के आलाधिकारी से न्याय का भीख मांगता रहा अचानक 3जून को पिंकी का फोन चाचा के मोबाईल पर आता हैं चाचा मैं बेगूसराय जिले के बखरी स्थिति वेश्यालय से बोल रही हुँ इस नरक से मुझे निकालो।जैसे ही यह फोन आया पिंकी के चाचा राज्य महिला आयोग के अध्यक्ष से मिल कर पिंकी के बारे में जानकारी दी।आयोग ने तुरंत बेगूसराय एस0पी0को इस मामले की जानकारी दी और तत्तकाल कारवाई करने का आदेश दिया।इस मामले में एस0पी0 ने खुद कारवाई की और पिंकी को बखरी स्थित वेश्यालय से बरामद कर लिया।पिंकी ने जो आप बीती सुनाई हैं उसे सुनकर आप भी हैरान रह जायेगे।जिस लड़के पर पिंकी के पिता ने बेटी के अपहरण का आरोप लगाया था उस लड़के से प्यार करती थी 15मई को पिंकी को घुमने चलने के बहाने राजीव पास के एक होटल में ले गया जहां अपने दोस्तों के साथ तीन दिनों तक बलात्कार किया और फिर दलालों के हाथो बेच दिया।बेचारी पिंकी दो वर्षों तक पूर्णिया ,खगड़िया और बखरी के वेश्यालय में अपने जिश्म का सौदा होते देखते रही। एक दिन किसी ग्राहक को इसकी आप बीती सुनकर तरस आ गयी और अपने मोबाईल से पंकी को चाचा से बात करा दिया। इस सच को अपने ब्लांग पर लिखने के पीछे न तो नीतीश सरकार के सुशासन के दावे पर सवाल खड़े करने का कोई इरादा हैं और ना ही इस राज्य के डी0जी0पी0 डी0एन0गौतम को आईना दिखाना हैं जो आये दिन अपने पुलिस के कार्यकलापों के लेकर बड़ी बड़ी बाते करते रहते हैं।पिंकी के बेहतर जीवन के लिए क्या किया जा सकता हैं और देश में कौन कौन सी ऐसी ऐंजसी हैं जो पिंकी को कानूनी मदद के साथ साथ मानशिक रुप से विक्षिप्त हो चुकी पिंकी को नये सिरे से जिंदगी जीने में सहयोग कर सकती हैं ऐसी कोई जानकारी आप के पास हो तो तुरंत दे क्यों कि इस सिंस्टम में लोकतंत्र के सारे स्तम्भ लगभग संवेदन शून्य हो गये हैं।

रविवार, जून 07, 2009

इन दिनों बिहार फिर सुर्खियों में हैं।

बिहार इन दिनों फिर सुर्खियों में हैं मामला अपहरण और हत्या से जुड़ी हैं।सरकार और उसकी पूरी मशीनरी मामले के उदभेदन में लगी हैं ऐसा दिख रही हैं ।लेकिन परिणाम शून्य हैं।पिछले एक पखवाड़े के दौरान बिहार में एक दर्जन से अधिक अपहरण और हत्या की बड़ी वारदात हो चुकी हैं मुख्यमंत्री से लेकर डी0जी0पी0तक अपने अपने तरीके से घटनाओं की व्याख्या कर रहे हैं।लेकिन जनता एक बार फिर सहम गयी हैं माहौल फिर से बदलने लगा हैं ।घर सही सलामत पहुंच जाय इसकी चिंन्ता लोगो के चेहरे पर फिर से झलकने लगी हैं।सत्यम उर्म आठ वर्ष पटना कंकड़बाग का रहने वाला हैं इसके पड़ोस में ही रहने वाला 14वर्ष का अविनाश और गुडु ने सत्यम का अपहरण कर लिया परिवार वाले थाने का चक्कर लगाते रहे लेकिन तीन दिनों तक प्राथमिकी तक दर्ज नही की गयी मामला का जब तक खुलासा हुआ तब तक सत्यम की हत्या हो चुकी थी।जांच के दौरान ये बाते खुल कर सामने आयी की आरोपी आज के वैशविक जरुरतों को पूरी करने के लिए इस घटना को अंजाम दिया था।इस मामले को लेकर पटना के लोगो ने जमकर हंगामा किया और जनता की मांग पर थानेदार गिरधर पांडेय को निलम्बित कर दिया गया।यह गिरधर पांडेय वही हैं जिन पर जहानावाद में महिलाओं की सरेआम पिटाई करने सहित कई आरोप की अभी भी जांच चल रही हैं ऐसे दागी पदाधिकारी की पदस्थापना कैसे हो गयी ये जांच का विषय सुशासन के दावे करने वाली सरकार के लिए जरुरी नही हैं।मुख्यमंत्री ने इस मामले में मनोचिकित्सक से सलाह लेने की बात करते हुए प्रशासनिक पहलुओं को नजरअंदाज कर दिया।इस घटना का फायदा उठाते हुए ऐसे पदाधिकारी जो वर्षों से राजधानी में पदस्थापित थे जिन्हे चुनाव आयोग ने हटा दिया था पुन पटना पहुंच गये और महत्वपूर्ण थाने के अध्यक्ष बन गये।दूसरी घटना भी पटना से ही जुड़ी हैं।जद यू नेता और पूर्व सांसद विजय कृष्ण पर अपने ही रिस्तेदार सत्येन्द्र सिंह की अपहरण कर हत्या करने का आरोप हैं घटना के 16दिन बाद भी पुलिस पूर्व सांसद और उसके बेटे के खिलाफ साक्ष्य ही इक्ठा करने में ही लगा हैं।दिखाने के लिए पुलिस पहली बार किसी भी अपराधिक मामलों के उदभेदन के लिए सेना की मदद ले रही हैं।वही बिहार की आर्थिक राजधानी माने जाने वाले मुजफ्फपुर में डां0दम्पति और एक पैट्रोल पम्प के व्यवसायी के तीन वर्षीय पुत्र को अपराधियों ने अपहरण कर लिया पैट्रोल पम्प व्यवसायी का पुत्र तीन लाख फिरौती दे कर छुटा हैं ऐसा उसके घर वाले ही कहते हैं वही डां0दम्पत्ति के अपह़्त पुत्र रितिक के रिहाई के लिए मोलभाव चल रहा हैं।यहां पदस्थापित एस0पी0सुधाशु कुमार पर भी अपराधियों को संरक्षण देने,फर्जी पासपोर्ट के मामले सहित कई मामलों में जांच चल रही हैं लेकिन सत्ता समीकरण से जुड़े रहने के कारण इन्हें महत्वपूर्ण जिले का एस0पी0 बनाये हुए हैं।यही स्थिति बेगूसराय समस्तीपुर का हैं।जहां यह चर्चाये आम हैं कि समस्तीपुर के एस0पी0थाने बेचते हैं कहने का मतलब यह हैं कि जो पुलिस पदाधिकारी जितनी अधिक बोली लगायेगा उसे उस थाने का अध्यक्ष बनाया जायेगा।एक एक थाने की बोली दो से तीन लाख होती हैं और उसके उपड़ से दस से पंद्रह हजार रुपया प्रतिमाह महिनवारी देनी हैं।अधिकांश जिलों की यही स्थिति हैं ऐसे हालात में नीतीश के दावे राज्य में कानून का राज्य स्थापित हैं सच से पड़े हैं। लेकिन लालू के कुशासन से तंग जनता इस हालात में भी सकून महसूस कर रहे हैं।

बुधवार, मई 27, 2009

आइ0आइटी में बिहार का परचम लहराया

बिहारी छात्रों ने एक बार फिर देश की सर्वोच्च संस्थान आइ आइटी में अपना परचम लहराया हैं।यह सिलसिला पिछले कई वर्षों से चला आ रहा हैं लेकिन इस बार का परिणाम कुछ खास हैं।पहली बार बङी संख्या में गांव के किसान, मजदूर और अल्पसंख्यक समाज के बच्चे सफल हुए हैं।इसका श्रेय कही न कही बिहार के वरिय आई0पी0एस0 अधिकारी अभयानंद और गणितज्ञ आनंद को जाता हैं ।जिन्होने बिहार के छात्रों में आइ0आइटी0 की परीक्षा में सफल होने का जुनुन पैदा कर दिया हैं।यही कारण हैं कि इस बार भी सुपर थर्टी,रहमानी थर्टी और त्रिवेणी थर्टी ने शतप्रतिशत रिजल्ट दिया हैं।इन संस्थानों का नकल करते हुए जीनियश 40,जैसी कई संस्थानों ने भी बेहतर परिणाम दिया हैं।आकङा पर गौर करे तो बिहार में परीक्षा की तैयारी करने वाले आठ सौ से अधिक छात्र सफल हुए हैं जिनमें से 90 प्रतिशत छात्र बिहार के सरकारी स्कूलों से पढकर यह कामयाबी हासिल की हैं ।और अधिकांश छात्र ग्रामीण परिवेश से जुङे हैं और पढने में औसत से बेहतर इनका रिजल्ट रहा हैं।अंग्रेजी और अंग्रेजिएट से इन सफल छात्रों का दूर दूर तक कोई वास्ता नही हैं।विक्रम राज को ही ले बिहार के सबसे अधिक नक्सल प्रभावित गांवों में एक गया जिले के चौगाइ का रहने वाला हैं।इसी तरह छपङा के किसान का बेटा जो विजय नरायण(1548)स्थान पाया हैं।ऐसे कई नाम हैं जिनका आर्थिक और सामाजिक हैसियत कमोवेश एक ही जैसा हैं।इस सफलता का श्रेय भी सूबे के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को दी जा सकती हैं। जिन्होनें स्पीडी ट्रायल का इंजाद कर पूरे बिहार में कानून का राज्य स्थापित करने वाले ए0डी0जी0पी0अभयानंद को जलील कर पुलिस मुख्यालय से बाहर कर दिया। और इनके ड्रीम सुपर थर्टी के सहयोगी आनंद को राजनैतिक महत्व देकर आपस में ही विवाद खङा करा दिया और स्थिति इतनी बिगङ गयी की अभयानंद को सुपर थर्थी को छोङना पङा।लेकिन कुछ ही दिनों बाद अभयानंद अपने आप को संभालते हुए पटना के अलावे पहली बार गया,भागलपुर और नीतीश कुमार के नालंदा में गरीब बच्चों के सहयोग के लिए आइ0 आइटी का कौचिंग संस्थान खोला जहां छात्रों को मुफ्त में पढाई और रहने खाने का प्रबंध किया।इसके लिए स्थानीय लोगो ने अभयानंद को काफी सहयोग किया और आइ0आइटी0 के कई पूर्ववर्ती छात्रों ने पढाने में सहयोग दिया जिसके बल पर इन संस्थानों में पढने वाले 55में 48छात्र सफल हुए।वही इस वर्ष से बिहार के कई और छोटे शहरों में अभयानंद का ड्रीम प्रोजेक्ट शुरु होने वाला हैं।जिसमें छात्रों को मुफ्त में शिक्षा के साथ रहने और खाने की भी व्यवस्था की जा रही हैं।जून में इसके लिए पूरे बिहार में प्रवेश परीक्षा का आयोजित होने वाला हैं।अभयानंद हमेशा कहते हैं बिहार ने मुझे बहुत कुछ दिया हैं जब तक इसके कर्ज को अदा नही कर देगे चैन से सांस नही लेगे।काश देश और विदेश में अपनी प्रतिभा के बल पर परचम लहङाने वाले हजारों बिहारी अभयानंद की तरह सोचते तो आज बिहार के मुख्यमंत्री को केन्द्र से भीख नही मांगनी पङती।

रविवार, मई 24, 2009

ममता,माया और जयललिता का राजनैतिक सफर

भारतीय राजनीत में ममता बनर्जी,मायावती और जयललिता किसी पहचान की मोहताज नही हैं।बिना किसी राजनैतिक क्षत्रंप के सहारे अपने बल पर राजनीत के क्षेत्र में इतिहास रचने वाले इन तीन देवियों ने बङे बङे सुरमाओ को दिन में तारे दिखा चुकी हैं।पिछले दो दशक से भारतीय राजनीत को अपने आस पास केन्द्रीत रखने वाले इन देवियों में इस वार ममता की बारी हैं जिन्होनें अपने बल पर वामपंथियों को उसी के गंढ में पटखनी दी हैं।ऐसे कयास लगाये जा रही हैं कि अगले विधानसभा चुनाव में वामपंथियों के अवैध दुर्ग पश्चिम बंगाल की किला ममता जरुर फतह कर लेगी।लेकिन ऐसा लगता हैं कि इस बार भी ममता उन्ही राजनैतिक गलतियों को फिर से दुहराह रही हैं जिसके कारण काफी लम्बी अवधी तक राजनीत की मुख्य धारा से दरकिनार रहना पङा था।यू कहे तो इन तीनों देवियों का हाल भारतीय हांकी टीम की जैसी हैं बहुत अच्छा खेलती लेकिन जब गोल करने की बारी आती हैं तो अंतिम समय में खुद गोल करने के चक्कर में या तो बोल गोलपोस्ट के उपर से चला जाता हैं या फिर विपक्षी टीम के रक्षंक खिलाङी छिनने में कामयाब हो जाते हैं।कहने का मतलव यह हैं कि जिस सोशल इंनजीनियरिंग के सहारे मायावती उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनी।लेकिन एक ही वर्ष में उसकी धार कुंद हो गयी और लोकसभा के चुनाव में नुकसान उठाना पङा।राजनीत में व्यक्तिगत विद्वेश्य और अतिवादी कार्य शैली का कोई स्थान नही हैं लेकिन ये तीनों देवी इसके शिकार हैं,।जिसके कारण हर बङी जीत के बाद इन्हे फिर से शून्य से शुरु करनी पङती हैं।मायावती जिस अंदाज में उत्तरप्रदेश की गद्दी सम्भाली थी ऐसे कयास लगाये जाने लगा था कि आने वाले वर्षों में यह देश की प्रधानमंत्री बनेगी लेकिन अपनी गलती से ये भी सीख नही ली और सत्ता सम्भालते ही व्यक्तिगत आरोप प्रत्यारोप में अपना समय जया करनी लगी परिणाम सामने हैं।मीडिया से लेकर करुणानिधी की कैम्प भी यह मान रहा था की इस बार तमिलनाडु में जयललिता की ढंका फिर बजेगी लेकिन हुआ इसके ठिक उलट इसके पीछे भी जयललिता की हठधर्मिता आङे आयी और तमिलनाडु के इतिहास के ठिक उलट परिवार वाद के सिंकजे में उलझ चुके करुणानिधि को लोगो ने अपार मतो से जीताया। ममता बन्रजी एक बार फिर काफी तामझाम के साथ सत्ता में आयी लेकिन ऐसा लग रहा हैं कि अपनी पुरानी गलती से सीख नही ली हैं। दिल्ली पहुचंते ही ममता वही पूरानी ममता दिखने लगी जिन्हे सम्भालने में वाजपेयी जी जैसे राजनेता को काफी मस्कत करनी पङी थी।रेल मंत्रालय की जिंद और पश्चिम बंगाल की सरकार को बरर्खास्त करने की मांग एक बार फिर से पूरानी ममता की याद ताजा कर दी हैं।हलाकि यह कहावत बिहार के गांव गांव में प्रचलित हैं लेकिन थोङा अभ्रश हैं लेकिन इन तीनों देवियों पर सटीक बैठती हैं कि कुत्ता को घी नही पचता हैं मतलब सत्ता इन्हे रास नही आती हैं।

शुक्रवार, मई 15, 2009

लोकतंत्र के नाम पर सब कुछ जायज हैं।

भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में 15वी लोकसभा का चुनाव कई मायनों में यादगार रहेगा। आजादी के बाद यह पहला लोकसभा चुनाव रहा जिसमें किसी भी राजनैतिक दल के पास कोई मुद्दा नही था।जब कि मंहगाई चरम पर हैं लेकिन किसी भी राजनैतिक दल ने इस मुद्दे को लेकर मनमोहन की सरकार को घेरने का प्रयास नही किया।वामपंथी जो चुनाव से पूर्व परमाणु डील के मुद्दे पर सरकार गिराने को आमदा थे चुनाव में इस मुद्दे को लेकर चर्चाये भी नही हुई।मुंबई में बिहारियों के पिटाई के मामले में जद यू के सांसद अपने पद से त्यागपत्र दे दिये थे लेकिन चुनाव में इस मसले को लेकर चर्चाये तक नही हुई।आये दिन लोगो की नौकरी जा रही हैं लेकिन यह किसी भी राजनैतिक दल के लिए कोई मुद्दा नही रहा कहने का यह मतलब हैं कि जनता के सरोकार से जुङे मुद्दे को लेकर कोई भी राजनैतिक दल चुनावी मैदान में नही आये थे ऐसे में मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग नही किया तो कौन सा गुनाह किया।वही इस चुनाव का दूसरा पहलु यह रहा कि चुनावी हिंसा में कही से भी किसी के हताहत होने की खबर नही आयी नक्सलीयों ने तबाही मचाने का प्रयास जरुर किया लेकिन कुछ खास कामयाबी उसे भी नही मिला।कहने का यह तातपर्य हैं कि राजनैतिक दल के गैर लोकतांत्रिक आचरण के बावजूद जनता ने मर्यादित होकर अपने मताधिकार का प्रयोग किया लोकतंत्र के बेहतरी के लिए किया ।लेकिन चुनाव परिणाम के आहट के साथ ही जिस तरीके से दिल्ली के सिंहासन के लिए चौसर में दाव लग रहा हैं भारतीय लोकतंत्र के लिए शुभ संकेत नही हैं।चुनाव खत्म होते ही राजनेता वह सब कुछ भूल गये जो कुछ चुनाव अभियान के दौरान जनता के सामने वादा किया था।बिहार के मुख्यमंत्री अपने ही गठबंधन के नेता नरेन्द्र मोदी को बिहार आने पर प्रतिबंध लगा दिया था लेकिन चुनाव खत्म होते ही दोनो गले मिल रहे हैं। नीतीश कुमार पर भरोसा करने वाले अल्पसंख्यक मतदाताओं को आज क्या महसूस हो रहा होगा इसका अंदाजा आप लगा सकते हैं।यही स्थिति कांग्रेस का हैं जिन्होने बिहार की जनता से चुनाव के दौरान लालू को मदद करने को लेकर माफी मांगा था लेकिन चुनाव खत्म होंते ही आज एक दूसरे को गले लगा रहे हैं।लालू प्रसाद से अलग हुए अल्पसंख्यक मतदाता और नीतीश के सामंती कार्यशैली से क्षुब्द मतदाताओ का क्या हाल होगा जो कांग्रेस को खुलकर वोट दिया।भारतीय इतिहास में सत्ता के लिए सबसे बङा संग्राम महाभारत को माना जाता हैं जहां सत्ता पर काबिज रहने के लिए सभी तरह के मर्यादाओं को ताक पर रख दिया गया था।लेकिन लोकतांत्रिक व्यवस्था में जहां जनता की भागीदारी से सरकार बनती हैं इस दौङ में भी सत्ता के लिए इस तरह का खेल क्या जायज हैं।यह एक यक्ष सवाल हैं क्या यही लोकतंत्र हैं।

रविवार, मई 03, 2009

इतिहास नीतीश को दूसरे औरंगजेब के रुप में याद रखेगा

राजनैतिक विशलेषको और भाजपा जद यू के हल्ला बोल पार्टी और मीडिया के एक बङे तबके की माने तो नीतीश की आंधी पूरे सूबे में चल रही हैं।कहने वाले तो यहां तक कह रहे हैं कि बिहार में 1977वाली लहर चल रही हैं।परिणाम जो भी हो लेकिन इस बार के चुनाव में बिहार की जनता ने लालू और रामविलास पासवान के राजनैतिक कैरियर पर विराम लगाने का प्रयास अवश्य किया हैं।पिछले कई दशक से जातिये राजनीत के बल पर बिहार की जनता के दिल पर राज करने वाले इन दोनों नेताओं की यह शायद आखिर पारी न साबित हो। कहने का यह मतलब हैं कि बिहार में जातिये समीकरण पर चुनाव लङने की वर्षों पुरानी शैली का अंत होता दिख रहा हैं ऐसे में अब जातिये नारो पर बिहार में राज करना सम्भव होता नही दिख रहा हैं।जो भी हो बिहार वाकई बदल रहा हैं और अपने गौरवशाली इतिहास की और लौटने की प्रवृति बलवति होती दिख रही हैं।चुनाव के जो भी परिणाम हो लेकिन बिहार के लोगो ने नीतीश कुमार के तथाकथित सुशासन और विकास के दावे को भी लोगो ने सिरे ने नकार दिया हैं।1962के बाद बिहार में सबसे कम पोलिंग इसी चुनाव में हुआ है।लोगो ने काग्रेस को हाथों हाथ लिया जहां कांग्रेस का कोई नाम लेवा नही था वही आज सभी वर्गो के जुवान पर कांग्रेस का नाम हैं।लालू और रामविलास के हार का कारण भी कांग्रेस ही बनेगा।हो सकता हैं कि बिहार में कांग्रेस खाता भी नही खोल सके लेकिन एक बङी ताकत के रुप में जरुर उभर कर सामने आयेगा जो नीतीश और लालू राम विलास तीनों के लिए शुभ संकेत नही हैं।नीतीश कुमार फले ही ऐतिहासिक जीत दर्ज करे लेकिन बिहार की शिक्षा व्यवस्था को चौपट करने के लिए इन्हे याद किया जायेगा।वही बिहार की राजनीत में जिस तरह से इन्होने मौका परस्ति और जातिये राजनीत के आङ में राजनीत का जो धिनौना खेल खेला हैं इतिहास औरंगजेब के बाद इन्हे शिद्दत से याद करेगा।जिस जार्ज ने लालू के अंहकार के खिलाफ बिहार में पार्टी खङी की और लालू प्रसाद को सत्ता से बेदखल किया उनके साथ नीतीश का व्यवहार शायद राजनीत का सबसे घिनौना चेहरा साबित होगा ।हो सकता हैं इस बार मुजफ्फरपुर में जार्ज की जमानत भी नही बचे लेकिन चुनाव अभियान के दौरान बिहार की जनता के सामने एक यक्ष सवाल जरुर खङा कर दिया हैं।क्या राजनीत में मौका परस्ति अनिवार्य हैं।जार्ज और दिग्विजय सिंह के साथ नीतीश कुमार को जो व्यवहार रहा शायद इस चुनाव का सबसे दुखद पहुली माना जायेगा।नीतीश भले ही ऐतिहासिक जीत दर्ज कर भारतीय राजनीत में एक नये क्षंत्रप के रुप में स्थापित हो जाये। लेकिन इनका यह मौका परस्ति इनके राजनैतिक सफर के अंत के लिए मील का पत्थर न कही शाबित हो जाये।

बुधवार, अप्रैल 15, 2009

प्रजातंत्र का यह कैसा महापर्व हैं।

15वीं लोकसभा चुनाव की उलटी गिनति शुरु हो गयी हैं।पहली बार चुनाव आयोग और कई स्वंयसेवी संगठनों ने मतदाताओं से मतदान में बढ चढ कर हिस्सा लेने के लिए अभियान चलाया हैं।लेकिन यह अभियान कितना सफल हो पाता हैं वह आने वाला वक्त ही बतायेगा।15वीं लोकसभा चुनाव के पूर्व आज तक देश में जितने भी चुनाव हुए हैं उसमें मतदान का प्रतिशत देखे तो कम से कम 48प्रतिशत और अधिक से 62प्रतिशत अपने मताधिकार का प्रयोग किया हैं।ऐलेक्सन वाच द्वारा तैयार आकंङों पर गौर करे तो शहरों में मतदान का प्रतिशत दिनों दिनों कम होता जा रहा हैं।झौपङ पट्टी के मतदाताओं का प्रतिशत हटा दे तो दिल्ली,मुबई,लखनुउ जैसे शहरों में बङे लोग और शिक्षित वर्ग के मतदाताओं के मतदान का प्रतिशत महज दस से बारह प्रतिशत हैं।मेरा खुद का अनुभव हैं 1998 लोकसभा चुनाव के दौरान मैं दिल्ली विश्वविधालय का छात्र था चुनाव में न तो हमारे शिक्षक मतदान करने गये थे और ना ही दिल्ली के रहने वाले हमारे साथ पढने वाले छात्र।शिक्षक औऱ छात्र चुनाव के दिन मतदान के लिए घोषित छुट्टी का उपयोग पार्क, रेस्टरा और कांलेज के लांन में मौज मस्ती में कर रहे थे।बिहारी होने के कारण नही चाहते हुए भी मतदान केन्द्र पर जाने की इक्छा को रोक नही सका मतदान केन्द्र पहुचा तो नजारा ही कुछ और ही था लम्बी लाईनो की बात करनी तो दूर बङे बुजुर्ग को छोङकर बूथ पर दूर दूर तक कोई नजर नही आ रहा था पार्टी द्वारा वाहन मुहैया कराने के बावजूद भी वोट डालने को लेकर लोगो में कोई खास उत्साह नही दिख रहा था यह नजारा किंग्वेकैम्प इलाका का था।हाई प्रोफाईल माने जाने वाले बंसत कुंज मालवीय नगर,जवाहर लाल नेहूरु विश्वविधालय के आस पास स्थित मतदान केन्द्रो का हाल तो और भी बुरा था दुर दुर तक वोटर दिखायी दी दे रहे थे।उसके उलट नंदनगरी जिसे हमलोग गंधनगरी कहते थे उन इलाकों में वोटरो की लम्बी कतारे देखी जा रही थी।इस बार दिल्ली और कर्नाटक में विधान सभा का चुनाव हुआ तो मैं अपने पुराने मित्रों से मतदाताओं का ट्रन्ड जानना चाहा तो कमों वेस यही स्थिति आज भी हैं।चुनाव के दिन अधिकांश प्राईवेट कम्पीनयों के दफ्तर में आम दिनों की तरह ही चलह पहल देखी जा रही हैं।लाखो रुपये का पैकेज पाने वाले हमारे कई सोफ्टवेयर इनजीनियर और पत्रकार मित्रों से चुनाव के दिन बात किया तो वोट देने की बात करना उन्हे अच्छा नही लगा।मेरे कहने का आसय यह हैं कि जिनके सहारे हम विश्व के सबसे बङे लोकतंत्र होने का दावा कर रहे हैं उनके लिए हमारी सरकार आज तक क्या की हैं।दिल्ली में एक घंटे बिजली कट जाये तो मीडिया के लिए सबसे बङी खबङ बन जाती हैं।सरकार को जबाव देनी पङती हैं लेकिन भारत में आज भी दो लाख से अधिक गांव हैं जहां आज तक बिजली का खम्भा भी नही पहुचा हैं।सरकार की आकङों पर ही गौर करे तो देश की 35करोङ आबादी निरक्षर हैं,31.8करोङ लोगो को स्वच्छ पानी से वचित हैं।वही देश की 25करोङ आवादी को स्वास्थय सुविधा उपल्बध नही हैं।85करोङ आवादी की रोज की आमदानी बीस रुपया से कम हैं। लेकिन आज दो वक्त की रोटी और समान्य सुविधा से भी महरुम देश की 65 प्रतिशत आबादी लोकतंत्र के इस महा पर्व में भाग लेने के लिए पंजाब और दिल्ली से वापस गांव लौट रहे हैं।गांव के ग्रामीण जनता की लोकतत्र के प्रति सब कुछ लुटा देने के बावजूद जो आस्था आज भी बरकरार हैं उनसे खेलवाङ न करे नही तो आने वाल कल वाकय भयावह होगा।आप आपना बजूद ढूढते रह जायेगे कब तक देश की भोली भाली जनता के मेहनत की कमाई के बल पर महानगरों की सुदरता बढाते रहेगे।जरा सोचिए नही तो भारतीय लोकतंत्र का क्षय निश्चित हैं।आज देख लिजिए माओवादियों के वोट बहिष्कार के घोषणा का असर सरकार ने नक्सल प्रभावित इलाकों से पांच सौ मतदान केन्द्रों को हटा लिया हैं और दो सौ से अधिक विधान सभा क्षेत्रों में नकस्लीयों के सम्भावित हमलो को देखते हुए मतदान की समय कम कर दी गयी हैं।यह प्रवृति बढ रही है और इसी तरह हमारी अर्थ नीति चलती रही तो एक दिन ऐसा भी आ सकता हैं की सरकार ई0भी0एम0 लेकर घुमती रहेगी कोई वोट देने वाला नही मिलेगा।