रविवार, सितंबर 27, 2009

जुल्म सहने से बेहतर हैं पति के बगैर जीने की आदत डालों

मैंच भारत और पाकिस्तान के बीच हो और रोमांस न हो ऐसा हो नही सकता हैं।सुबह से ही मैंच को लेकर बेचैनी थी। लेकिन दिन की शुरुआत कुछ अच्छा नही रहा 21वी संदी में भी लड़किया कितनी विवश और लाचार हैं उसका एहसास पहली बार मुझे हो रहा था ।अब तक तो एक पत्रकार के रुप में लड़कियों के मसले को देखते और दिखाते रहे थे ।लेकिन आज मुझे एहसास हुआ कि लड़किया इतनी विवश क्यो हैं।मैं वह सब कुछ देखता रहा जिसको लेकर मैं कभी टीवी एसक्रिन पर आग उगला था ,मैं वह सब कुछ देखता रहा जिसको लेकर मैने पूरी सिरीज लिख डाली थी लेकिन आज मेरा कैमरा और कलम दोनों खामोंश हैं।चीख चीख कर स्वाती बोल रही थी जीजा जी मुझे रोक लो नही तो मेरी लाश देखोगे। लेकिन मैं विवश स्वाती को उस जुल्मी के साथ जाने देने को विवश था जिस को मैं कल तक अपना सबसे अजीज मानता था। भारत की बैंटींग शुरु हो गयी थी और अपने युवा बिग्रेड का खेल देख कर आने वाले बेहतर कल की उम्मीद में स्वाती के बारे में ही सोचे जा रहा था।मोबाईल की घंटी बचते ही चौंक उठता था कही कोई अशुभ समाचार तो नही हैं।खैर भारतीय टीम के युवा बिग्रेड का खेल देख कर बड़ा सकून हुआ और विस्तर पर आते ही नींद भी आ गयी ।कल उपवास खत्म होने वाला था उसकी भी बैंचनी थी फिर भी आराम से सोया हुआ था कि अचानक छोटे छोटे बच्चियों के किलकारी की आवाज सुनायी दी।आंख खुली तो सामने के छत पर खुबसुरत पंडाल के बीच छोटी छोटी लड़किया बैठी हुई थी।अचानक याद आया अरे आज तो कुमारी पूजा हैं ।विस्तर पर लेटे लेटे ही देखने लगे महिलाये लड़कियों को सजा रही थी फिर बारी बारी से पैर छू कर आशीर्वाद ले रही थी। एक लड़की पर मेरी नजर पड़ी पूरी तरह से खामोश चुप चाप पूरी गतिविधि को देख रही थी अचानक वह उठकर चल दी महिलाये दोड़ी बैंठ जाओं बैंठ जाओं लेकिन किसी की एक नही सूनी सामने स्थिति नल पर चली गयी और पानी चलाकर रंगे हुए पैंर को धोने लगी उसके चेहरे को देखने से लग रहा था कि उसके साथ जो व्यवहार किया जा रहा था वह उसे पसंद नही था।उसके इस विरोधी तेवर को देख मैं विस्तर से उठ बालकोनी की तरफ भागा जब तक मैं पहुचता वह नीचे उतर चुकी थी और महिलाये आपस में फुदफुदा रही थी।काश यह विद्रोही तेवर स्वाती की होती तो आज उसे जलालत की जिंदगी जीना नही पड़ता।उसका एक ही जवाव मेरे दिलो दिमाग को झकझोड़ रहा था जीजा जी जिस दिन लड़की में पैदा लिया पिता का घर बेगाना हो गया जब से होश सम्भाला बुआ, दादी मां,चाची बस इतना ही कहती थी दूसरे घर की अमानत हैं ऐसा मत कर ऐसा क्यों करती हो।जीजा जी सत्या को कैसे छोड़ दे बाहर की दुनिया में जीना तो और भी मुश्किल हैं,ताना सुनते सुनते मैं मर जाउगी। आज पति चरित्र पर सवाल खड़ा कर रहा हैं कल सारी दुनिया मेरे चरित्र को तार तार करने में लग जायेगी। यह हकीकत हैं मंदी के इस दौड़ में परेशान निराश एक युवा कप्ल का जिसकी शादी को हुए आठ माह भी नही हुआ हैं।स्वाती की शादी एलजी0में काम करने वाले एक योग्य इंनजीनयर से हुआ सपनों की बड़ी बड़ी उड़ाने लेकर अपनी ससुराल आयी ।लेकिन स्वाती सपनो में भी यह नही सोची थी कि उसके साथ यह सब होगा।हनीमून मनाने शिमला गयी एक पखवाड़े बाद जब लौटकर आयी तो अचानक बिमार हो गयी डांक्टर पर डांक्टर बदलते रहा लेकिन बुखार कमने का नाम नही ले रहा था।यह देखकर महिलाये भूत प्रेत की चर्चाये करनी लगी और होते होते बात डायन पर आ गयी। इस बीच स्वाती का जन्म पत्री देखाया गया तो वह मंगली निकली इसके बाद तो उसके उपड़ दुख का पहाड़ ही टुट परी सास का ताना शुरु हुआ और देखते देखते पूरे घर की वह भिलेन बन गयी फिर भी पति का साथ मिलता रहा इस बीच कम्पनी के उतार चढाउ को देखते हुए उसे कम्पनी बदलनी पड़ी और नये कम्पनी में आते ही मंदी का मार पड़ने लगा।चार माह में तीन कम्पनी बदलनी पड़ी और इसके कारण शहर भी बदलता रहा। नौकरी के उठापठक और नये दौड़ के युवाओं में रातो रात करोड़पति बनने और बीबी के साथ फाईव स्टार होटल में रात गुजारने और बीबी हो तो ऐश्वारिया राय की तरह।इस सनक के कारण आज देश का लाखों युवक डिप्रेशन का शिकार हैं।उदारीकरण के दौड़ में रातो रातो इतनी कमाई बढ गयी कि उसका पैर जमीन पर नही रहा और पैसे के दंभ पर वो सब कुछ पाने का ख्वाब देखने लगा जिसके वह काबिल नही था।उसी सनक की शिकार स्वाती बनी हैं आफिस के टेशन के साथ साथ अपने अयोग्यता का ठिकरा स्वाती पर मढने का जो सिलसिला शुरु हुआ वह यहां तक पहुंच गया कि उसे रात रात भर पिटायी की जाने लगी। सबसे दुखद पहलु यह हैं कि इस मसले पर ससुराल के लोग चुप्पी साधे हुए हैं।स्वाती के लिए आज हर रात एक खोफनाक रात के समान हैं रोज उसे नये नये तरीके से प्रताड़ित किया जा रहा हैं। लेकिन वह सब कुछ सह रही हैं बस इस उम्मीद से की एक दिन ऐसा आयेगा कि उसका सत्या पहले जैसा प्यार करेगा।पता नही कब वह दिन आयेगा लेकिन मैं तो दोराहे पर खड़ा हुं एक तरफ मेरे ससुराल वाले हैं तो दूसरी और मेरी पत्रकारिता मैंने तय किया हैं कि अगर कोई घटना घटती हैं तो मेरी लड़ाई स्वाती को न्याय दिलाने के पंक्ष में रहेगी।शायद मेरे इस व्यवहार से लोग चेते और जेल जाने का डर भी रहे।लेकिन इस मसले का दूसरा पंक्ष यह भी हैं कि लड़की के पंक्ष में उसका बाप भी नही हैं।वो भी अपनी बेटी को यही नसीहत दे रहे हैं कि किसी तरह स्थिति को संभालो। पता नही स्वाती किस हाल में हैं लेकिन मेरा एक सवाल आप सबों से हैं और दुनिया बनाने वाले से भी हैं कि लड़की में जन्म लेना क्या वाकई अभिशाप हैं।यह मेरी लड़ाई हैं नही हैं इस जहां की लड़ाई हैं आपके आसपास रोजना इस तरह के वारदात होते रहते हैं लेकिन हम सब लड़कियों पर आरोप मंढ कर उस पर जुल्म करते हैं य़ा फिर जुल्म होते देखते रहते हैं ।

3 टिप्‍पणियां:

दिनेशराय द्विवेदी ने कहा…

सब से पहले तो माता पिता को पुत्र और पुत्री को समान भाव से पालना चाहिए और दोनों को पैरों पर खड़ा होने तक मदद करनी चाहिए। जब लड़की अपने पैरों पर खड़ी हो और उस में आत्मविश्वास जाग्रत हो जाए तो वह स्वयं अपने भले बुरे का सोचने लगेगी।

वन्दना अवस्थी दुबे ने कहा…

लेकिन सन्तोष जी आप किसी घटना के घट जाने का इन्तज़ार क्यों कर रहे हैं? स्वाति के मसले में अनहोनी हो भी सकती है ऐसे में आप पहले ही कोई ऐसा कदम क्यों नहीं उठाते कि स्वाति की जान बची रहे?

Kaushal Kishore , Kharbhaia , Patna : कौशल किशोर ; खरभैया , तोप , पटना ने कहा…

संतोषजी
आपने अपनी पारिवारिक समस्या को चूँकि सार्वजनिक किया है अतः पाठकों की राय अपेक्षित है .समाज के जागरुक तबके के सदस्य होने के नाते हम सबकी सामूहिक जिम्मेबारी है की स्वाति को इस विषम परिस्थिति से उबारा जाय.व्यक्तिगत ,पारिवारिक , सामजिक और कानूनी स्तर - सब तरफ से बहुत कुछ करने की गुन्जायिश है.किंकर्त्तव्य विमूढ़ होने की स्थिति नहीं है. कोई अनहोनी हो जाय तो कुछ हरकत हो ,यह क्या बात हुयी.बहुत विषम परिस्थितियों का सहज और सीधा हल होता है.कब तक वह लड़की अन्याय और अत्याचार सहेगी ?
विभिन्न स्तरों पर क्या क्या हो सकता है इसका खुलासा जरूरी नहीं .चुप रह कर सब उस लड़की पर अत्याचार को बढावा तो नहीं दे रहे .जैसा भी है पति परमेश्वर है ? परिवार की इज्जत ख़राब होगी. सरकार ने घरेलु हिंसा के खिलाफ कानून बनाया है. किस दिन के लिए और किन लोगों के लिए.
सादर