बिहार और हादसा एक दूसरे का प्राय बन गया हैं।छतीशगढ के कोरबा में चिमनी गिरने से 31बिहारी मजदूर के मरने का गम अभी मिटा भी नही था कि ,दशहरे की शाम खगड़िया और दरभंगा जिले में हुए नौंका दुर्घटना में सौं से अधिक लोगो के मरने की आशंका हैं।शवों के निकालने का काम अभी भी जारी हैं।घटना दलित नेता रामविलास पासवान के गांव और ननिहाल में घटा हैं जहां से इन्होने अपने राजनैतिक जीवन कि शुरुआत की और आज भी इन क्षेत्रों का प्रतिनिधुत्व उनके अपने रिश्तेदार ही कर रहे हैं।
रामविलास पासवान अपनी सभा में हमेशा यह जुमला दोहराते रहे हैं कि मैं उस घर में दिया जलाउँगा जिस घर में सदियों से अंधेरा हैं ।लेकिन इस नारे में कितना दम हैं वह इस हादसे से समझा जा सकता हैं।मरने वालों में अधिकांश रामविलास पासवान के गांव शहरबन्नी का रहने वाले हैं।यह गांव खगड़िया जिले के अलौली प्रंखड में पड़ता हैं जहां आज भी जाने के लिए सड़के नही हैं खगड़िया आने के लिए नाव से नदी पार करनी पड़ती हैं।रामविलास पासवान के छोटे भाई पशुपतिपारस पिछले 25वर्षों से लगातार इस क्षेत्र से चुनाव जितते रहे हैं लेकिन अपने गांव जाने के लिए एक पुल तक नही बनवा पाये ।
आम राय यह हैं कि बड़े घर में पैदा लेने वाले ऐसे लोग जो गांव की पगडंडी नही देखी हैं वे देश का कैसे प्रतिनिधुत्व करेगे।आप ही बताये रामविलास पासवान बिहार के सबसे पिछड़े इलाकों में जन्म लिय़े हैं वही पले बढे उसी गांव में पढाई की ।खेतो के मेर पर चल कर दिल्ली पहुंचे और फिर भूल गये अपने ही गांव को। जिस बागमति नदी के घाट पर घटना घटी हैं उस नदी को हजारो बार पार किये होगे रामविलास पासवान, नदी पार करने के दर्द को हजारो बार महसूस किये होगे लेकिन उस दर्द को मिटाने के लिए कोई पहल नही किया।क्या दर्द महसूस करने वाला ही गरीबों का भाग्यविधाता हो सकता हैं इस घटना ने वर्षों पुरानी इस मिथिया को तोड़ दिया हैं जिसको लेकर हमारे दिल्ली में बैठे मित्र आये दिन बड़े बड़े आर्टकिल लिखते रहते हैं।
हादसे का यह एक पहलु हैं दूसरा पहलु भी कम गम्भीर नही हैं पर्व का मौंसम आते ही उसके तैयारी को लेकर पंचायत से लेकर मुख्यमंत्री स्तर तक बैंठके होती हैं।एक से एक फरवान जारी की जाती हैं लेकिन उसके प्रति पदाधिकारी कितने गम्भीर रहते हैं उसका एक यह जीवंत नमूना हैं।उत्तरी बिहार में करीब सौ से दो सौ ऐसी घाट हैं जहां से रोजना लोग नांव से पार करते हैं ।इसके बदले में गांव वाले को पैसा भी देना पड़ता हैं ।सरकार को प्रतिवर्ष करोड़ो रुपये इसके ठिके से आता हैं लेकिन इसके रख रखाव पर सरकार कुछ भी ध्यान नही देती हैं।जिसके कारण आये दिन नौंका दुर्धटनाये होती रहती हैं और सरकार लाख रुपये मुआवजा की घोषणा कर अपने जबावदेही से मुक्त हो जाती हैं।मेरा खुद का अनुभव हैं जब में दरभंगा में पदस्थापित था शुक्रवार का दिन था करेह नदी पर स्थित हथौंड़ी घाट पर पहुचे तो हैरान रह गया जिस घाट पर पांच से दस आदमी नाव से पार करते थे आज दौ सौ आदमी पार कर रहा हैं और हजारों लोग लाईन में लगे हैं।,नाव के किनारे पहुचते ही लोग नाव पर चढने के लिए टूट पड़ते थे।हलात यह था कि किसी भी समय नाव पानी में पलटी मार देता नाविक और घाट के ठिकेदार हल्ला कर रहा हैं लेकिन कोई मामने वाला नही था।हमारे लिए यह एक बड़ी खबड़ थी।खबड़ करने के बाद जब लोगो का बाईट लेने लगा तो पता चला कि हथौंड़ी बजार में हर शुक्रवार को हाट लगता हैं और आसपास के गांव के लोग समान खरीदने जाते हैं।अंधेरा होने से पहले गांव लौंट जाय इस हरबरी में खासकर महिलाये जान जोखिम में डालकर नदी पार करना चाहती हैं जिस दौरान कई बार हादसा भी हुआ।खबड़ पर डीएम का जब बाईट लेने पहुंचा तो पहले उनको पूरा भिजुउल दिखा दिया ।किस तरह लोक जान हथेली पर लेकर नदी पार कर रहे थे।डीएम ने बाईट देने के साथ साथ शुक्रवार को पुलिस बल और मजिस्ट्रेट की नियुक्ति के साथ साथ ठिकेदार को शुक्रवार को अधिक नाव रखने का निर्देश दिया।कल की घटना के बाद जब मैं हथौंड़ी घाट के ठिकेदार के मोबाईल पर फोनकर हालचाल जानने के बाद शुक्रवार वाली व्यवस्था के बारे में पुछा तो पता चला कि सर उस डीएम साहब के जाने के बाद पुलिस बल और मजिस्ट्रेट की तैनाती बंद ही हो गयी और आप भी इधर नही आ रहे हैं जो ये बाते बताते।कहने का मेरा मकसद यह हैं कि सभी अधिकारी जानते हैं कि हाट के दिन और पर्व त्यौहार के दिन गांव की महिलाये सजधज कर पास के छोटे शहरो में अपने बच्चों के साथ मेला देखने जाती हैं जिसमें शतप्रतिशत महिलाये निरक्षर होती हैं और कई तो पहली बार बाजार देखती हें।पूरे दिन शहर आती हैं और शाम होते ही गांव जाने की जल्दी में किसी भी तरह जान जोखिम में डालकर नदी पार करना चाहती हैं ।जिसके कारण बिहार में प्रति वर्ष नौका दुर्घटनाये होती हैं और इसमें सैकड़ो लोगो की जाने भी जाती हैं।लेकिन प्रशासन आज तक इस घटना से सीख नही ली हैं।क्या ऐसे प्रशासक को जनता के गाढी कमाई से वेतन पाने का हक हैं क्यों न इन्हे बर्खास्त कर दिया जाता हैं इस मौंत के लिए आखिर कौन जिम्मेवार हैं जब तक जिम्मेवारी तय नही की जायेगी यह सिलसिला जारी रहेगा।
5 टिप्पणियां:
hriday vidarak chitr vishes taur par bacche ka...
"आम राय यह हैं कि बड़े घर में पैदा लेने वाले ऐसे लोग जो गांव की पगडंडी नही देखी हैं वे देश का कैसे प्रतिनिधुत्व करेगे"
yathatrth parakh chitran !!
Afsosnaak hai ye.
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
मेरा नानी गाँव खगडिया जिले में है... हर साल बाढ़ की चपेट में रहता है... गंडक थोडी दूर पर ही बहती है इतना की हम मुह धो कर नहाने चले जाते थे... एक तार को पकड़कर नाव से कई बार कई घाट मैंने भी पार किया है... यह हालत वाकई चिंताजनक है... सुबह पटना से हमारे न्यूज़ रूम से संवाददाता शुक्ल जी ने अपडेट दिया है...
उससे से बड़ी अफ़सोस की बात यह है की २५ से जीतने वाले पासवान जी के रिश्तेदार क्या कर रहे हैं? धिक्कार है उनपे.
Dardnaak hadsa .....!!
man bhar uthta hai is tarah ki moute dekh ....!!
नीतीश जी यह राजनीत करने का वक्त नही हैं
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